Thursday, December 10, 2015

नेपोलियन बोनापार्ट - मौत को असंभव न बना सका।

- वीर विनोद छाबड़ा
फ्रांस के किंग नेपोलियन बोनापार्ट की डिक्शनरी में 'असंभव' जैसा कोई शब्द नहीं था। यही वज़ह है कि हौंसला छोड़ चुके लोगों में हिम्मत भरने के लिए नेपोलियन का नाम लिया जाता है।

नेपोलियन बहुत साहसी था। रुकना उसने कभी सीखा नहीं था। कैसी भी नदी हो या पहाड़ कोई भी उसे रोक नहीं सकता था। उसने यूरोप पर वर्चस्व के लिए कई बार युद्ध किया। कई बार जीता और हारा भी।
बताया जाता है कि एक बार आल्पस पर्वत श्रंखला ने नेपोलियन के विजय अभियान रोक दिया।
नेपोलियन पर्वत के उस पार जाने का रास्ता तलाशने लगा। वहां उसे एक बूढ़ी औरत मिली। नेपोलियन ने अपने आने का सबब बताया और आल्पस के उस पार जाने का जुगाड़ पूछा।
बुढ़िया जोर से हंसी - मूर्ख, तेरे जैसे कई आये। बहुत कोशिश की पहाड़ लांघने की लेकिन सब के सब मर-खप गए। अपना वक़्त जाया मत कर। लौट जा।
मगर नेपोलियन बुढ़िया के कथन से कतई हतोत्साहित नहीं हुआ। उलटे उसके इरादे और भी मज़बूत और बुलंद हो गए।
बुढ़िया हैरान हो गयी - तेरे जैसों के कारण ही साहस बचा हुआ है। 
और आख़िरकार आल्पस पर्वत को अपना शीश झुकाना पड़ा।
दुनिया में कोई अजेय नहीं रहा। मौत कभी असंभव नहीं होती। नेपोलियन को भी अपना वॉटरलू देखना पड़ा।
नेपोलियन अपना आख़िरी युद्ध हार गया। उसे ब्रिटेन ने १८१५ में बंदी बना लिया और सुदूर दक्षिण अटलांटिक समुंद्र में स्थिति एक जवालामुखी के कारण उत्पन्न एक छोटे से टापू सेंट हेलेना में बंदी बना कर रखा। वहां उसकी ०५ मई १८२१ में मृत्यु हो गयी। तब उसकी उम्र महज़ ५१ साल थी।
नेपोलियन की मृत्यु को लेकर कई भ्रांतियां हैं। कुछ का कहना है कि उसकी मृत्यु ज़हर से हुई है। इस पर भी अलग-अलग राय है।
उसे ज़हर दिया गया या उसने ज़हर लिया। लेकिन अधिकतर इतिहासकारों का कथन है कि नेपोलियन की मृत्यु का कारण उसके पेट में कैंसर का होना था। उसके पिता भी पेट के कैंसर से मरे थे।
अंग्रेज़ शासकों ने फ्रांसीसियों को नेपोलियन का शव नहीं दिया। एक लंबी जद्दोजहद के बाद आख़िरकार शव देना पड़ा और नेपोलियन के अवशेषों को १५ दिसंबर १८४० अपनी जन्मभूमि फ़्रांस की धरती पर दो गज़ ज़मीन नसीब हुई। अपने वीर को आख़िरी सैल्यूट देने के लिए लाखों फ़्रांसिसी मौजूद थे।
दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है लेकिन मौत अटल है, चाहे कोई कितना भी बड़ा सूरमा हो। 
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