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वीर विनोद छाबड़ा
हम जब भी किसी अपने का कुंवारापन समाप्त होते सुनते या देखते हैं, हमें अपने कुंवारे
जीवन के अच्छे और ख़राब दिन याद आते हैं। हम
बहुत पुलकित महसूस करते हैं। याद आता है कि कैसे अनेक लोग हमें ललचाई आंखोंं
से देखा करते थे। हमने भी टैग लगा रखा था - बिलकुल मुफ़्त।
यों हम थे भी सस्ते मद्दे। साढ़े पांच सौ होम कैरिंग सैलरी। वैसे सत्तर के दशक में
ठीक-ठाक रक़म थी। कई लोगों की सोच थी बिजली बोर्ड में नौकरी है। 'नीचे' की कमाई अच्छी होगी।
परंतु हमने हमने क्लियर कर रखा था, न ऐसा है और न ही होगा।
हमारी टेबल के सामने पटरा लगा है। पूरी तरह से बंद है। बस एक ही फ़ायदा है कि हेडक्वार्टर
पर भर्ती हुए हैं और ताउम्र यहीं रहना है। नो ट्रांसफर फ्रॉम लखनऊ। कई लोग बाक़ायदा
जांच-पड़ताल भी कर गये। लड़के की कुछ 'कमाई' तो है नहीं। पगार के अलावा लेख-कहानी लिखने से कितनी कमाई होती है भला? एक और माईनस पॉइंट
भी था कि आंखों पर मोटे लैंस वाला काले फ्रेम का चश्मा। एक साहब की आंखों में हमने
पढ़ लिया - आगे चल कर अंधा हो जाएगा।
हमने भी आंखों आंखों में जवाब दिया - अच्छा ही तो है। कटोरा लेकर किसी मंदिर के
गेट पर बैठ जाएंगे। ऑफिस जाते हुए एक घंटा भर सुबह और लौटते हुए दो घंटा शाम। भिखारी
भी तो इंसान ही है। पार्ट टाईम जॉब।
बहरहाल वो दौर ऐसा था कि पसंद मां-बाप को करनी थी। हमें सिर्फ़ हां कहने की औपचारिकता
पूरी करनी थी। एक बार ऐसा हुआ कि इससे पहले कि हम 'हां' बोलते लड़की ने ही हमें
रिजेक्ट कर दिया। उसे हम जैसा बंदर नहीं, कोई भोंदू सूरत वाला पसंद था। लेकिन हम अवसाद में नहीं गए। लड़की
की हमने तारीफ़ की। हां या न का हक़ उसका भी बनता है।
लेकिन यह दौर होता बड़ा प्यारा है,
जब आप सबसे अधिक मांग वाले व्यक्ति होते हैं। तमाम कमियों के
बावजूद सर आंखों पर बैठाने वालों की कमी नहीं होती। मगर दुनिया चिर कुंवारा नहीं रहने
देती।
लेकिन हमारे एक सीनियर सहकर्मी मित्र शुक्ल जी ने ठान रखी थी कि चिर कुंवारा ही
रहूंगा। लेकिन इसके बावजूद उनकी मांग में कमी नहीं आई। रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें
ऑफ़र आते रहे। परंतु वो न ही करते रहे। अंततः वो कुंवारे ही दुनिया छोड़ गए। भतीजे-भतीजियां
को ही अपने बच्चे समझते रहे।
हालांकि हम शुक्ल जी से बहुत प्रभावित रहा करते थे। यह कुंवारापन जितना ज्यादा
खिंचे, उतना ही अच्छा है। लेकिन हमारी डेस्टिनी में शादी लिखी थी, इसलिए देर-सवेर बावजूद
तेज बरसात में भी ज़बरदस्त बाजे-गाजे के साथ हो ही गई।
हमसे ज्यादा तो हमारे ससुराल वाले खुश थे। उनकी बलां हमें ट्रांसफ़र हुई।
हमारे ख़्याल से कुंवारापन सर्वश्रेष्ठ मस्ती भरा जीवन था। आप भी अपना कुंवारापन
याद करिये और खुश हो लीजिये।
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