Saturday, December 26, 2015

रे मन! गीत लिखूं मैं कैसे?

रिपोर्ट - वीर विनोद छाबड़ा
दिनांक २४ दिसंबर २०१५ - लखनऊ पुस्तक मेला स्थल। चार कथा, काव्य व निबंध पुस्तकों की रचियता तथा सुप्रसिद्ध लेखिका शीला पांडे के पहला गीत संग्रह 'रे मन गीत लिखूं मैं कैसे?' का विमोचन।  कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी संस्थान के अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध कवि उदय प्रताप सिंह ने की और विशिष्ट अथिति थे सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी। 
Sheela Pandey

शीला पांडे ने अपने लेखकीय वक्तव्य में बताया कि जीवन ही कविता है। प्रकृति का जीवन से गहरा रिश्ता है। प्रकृति की सजीव मूक अभिव्यक्ति मानव भावनाओं को सींचती है, संवर्धन करती है। प्रकृति हमसे संवाद करती है और हममें कोमल व उदार भाव पोषित करती है। यदि मानव जीवन का सिर्फ यथार्थ लिखा जाये तो सूखेपन और आक्रोश का जन्म होता है। संघर्ष मानव जीवन की तरलता और चहक को सोख कर जीवन को नीरस बनाता है। छंदबद्ध कवितायें मानव जीवन को संजोती हैं। मानव जब अपने अंतर्मन की यात्रा करता है और उसका बोध करता है तो उसके भीतर से प्रकाश प्रस्फुटित होता है। सामाजिक सरोकारों के साथ प्रकृति और कविता के प्रति दृष्टिकोण विकसित करना आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इसी के दृष्टिगत 'रे मन गीत लिखूं मैं कैसे' लिखा गया है। 


प्रसिद्ध कवि डॉ मधुकर अष्ठाना के अनुसार साहित्य मानवता की पाठशाला है। गीत सर्वश्रेष्ठ  है। गीत संवेदना को प्रभावित करता है। प्रत्येक गीत नवगीत नहीं होता। गीत में प्रगतिशीलता के कारण नवगीत बना। शीलाजी की कवितायें नारी जीवन के संघर्ष का बोध कराती हैं। इनमें मौलिकता है। प्रगतिशीलता दूर तक ले जाती है। प्रकृति से बेहद प्रभावित हैं। नए प्रयोग करती हैं। चित्रकार की भांति चित्र खींचती हैं। ऋतुओं को जीवंत करती हैं और उपमाओं से मन की बात करती हैं। मन की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। नवीनता दिखती है। व्यक्तिगत पीड़ा सामाजिक पीड़ा में प्रकट होती है। अपार संभावनाएं हैं शीलाजी में।

सुप्रसिद्ध कवि और दार्शनिक डॉ अनिल मिश्र ने बताया कि संपूर्ण साहित्यिक वातावरण और सोच में अस्पष्टता की स्थिति है। कवित्व में जब लयबद्धता आ गयी तो वही कविता बन गयी। सृष्टि में ही लयबद्धता है। शीलाजी और उनके जैसे इसे आगे बढ़ाते रहेंगे। बहुआयामी है उनकी यह पुस्तक। भाव और भाषा को ढोने के लिए शब्द स्वयं आने लगते हैं। गीत में अनुशासन है।

Gopal Chaturvedi
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने बताया कि शीलाजी कविताएं बहुत अच्छी हैं। मानवीय संवेदनाओं का मानवीय चेहरा छंद में है। पुरवाई की शीतलता की तरह है यह कविता संग्रह। जीवन में अगर सुख चैन है तो बहुत अच्छा है। जीवन और कविता में अनुशासन ज़रूरी है और शीलाजी में ये बात है। भंवर में डूब जाने का भाव बताता है कि कवि कितना साहसी है।

सुप्रसिद्ध कवि उदय प्रताप सिंह कहते हैं कि वो कविता की आलोचना और समीक्षा के विरुद्ध हैं। सूरतें असमान हैं तो कविताएं भी अलग अलग होंगी। कविता में फेल आदमी आलोचक बन जाता है। शीलाजी का पहला कविता संग्रह है, बहुत बड़ा काम है। बॉम्बे ब्लास्ट के बाद लिखी कविता में यदि कुछ कमी है तो क्या हुआ? विश्व को सुंदर बनाने वाली कविता ही असली कविता है। कविता का जन्म गद्य से पहले हुआ है। कविता का जन्म करुणा, ममता और वेदना से है। कविता की अधिकारणी नारी है, पुरुष नहीं।

कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कथाकार महेंद्र भीष्म ने किया। कार्यक्रम में शक़ील सिद्दीकी, दयानंद पांडे, नसीम साकेती, अलका प्रमोद, संजीव जायसवाल, राजेश अरोड़ा 'शलभ' आदि अनेक जाने-माने साहित्यकार और साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
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