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वीर विनोद छाबड़ा
कई साल पहले हमारे एरिया में किरयाने की एक ही दुकान होती थी। ठीक से नाम याद नहीं
आ रहा। शायद शक़ील था उसका नाम। शक़ील प्रोविज़नल किराना स्टोर। फिर के एक और भाई की दुकान
खुली। हिंदू भाई थे - बिंदू लाल प्रोविज़नल स्टोर।
कुछ साल बाद विकास के नाम पर बुलडोज़र चला। पूरी मार्किट ही ज़मींदोज़ हो गयी। शक़ील
भाई की दुकान भी उसमें शामिल थे। दुखी होकर सड़क के उस पार चले गए शक़ील भाई।
लेकिन हम उन्हीं से सौदा लेते रहे। चौबीस घंटे हैवी ट्रैफ़िक दौड़ाता था उस सड़क पर।
जब तब उसे पार करने का रिस्क उठाते रहे। शक़ील भाई और हमारा बरसों का साथ रहा है। कभी-कभार
उधार भी चल जाता था।
बिंदू भाई थे हमारे घर से बहुत नज़दीक। सड़क पार करने का झंझट भी नहीं था। लेकिन
नाप-तौल के मामले में उनकी उनकी रेपुटेशन ठीक नहीं थी। कई चतुर सम्राटों को भी कई दफ़े
किलो में पचास-साठ ग्राम का चूना लगा चुके थे।
शक़ील भाई ठीक थे। पांच वक़्त के नमाज़ी। झूठ-फरेब से कोसों दूर। हम उन्हें सामान
की लिस्ट पकड़ा देते। इत्मीनान से बाहर बेंच पर बैठते। अख़बार पढ़ते और शक़ील भाई की एक-आध
सिगरेट भी धुआं-धुआं करते। आधा घंटा आराम से गुज़र जाता। इस बीच शक़ील भाई सारा सामान
तौल कर थैले में भर देते। और हम बिल पेमेंट करके चल देते।
एक दिन क्या हुआ कि एक आईटम कम निकला। हम पहुंचे शक़ील भाई के पास शिक़ायत करने।
वो पसड़ गए कि उन्होंने रखा है। हमने कहा कि रखा होता तो थैले में होता। बात बढ़ती
ही चली गयी।
उन्होंने हमें ही कठघरे में खड़ा कर दिया। आपकी गलती है कि थैले में सामान भरा जा
रहा था तो क्यों नहीं देखा? मज़े से सिगरेट फूंक रहे थे। आसपास खड़े लोगों ने भी शक़ील भाई का साथ दिया आपको देखना
चाहिए था।
हमने शक़ील भाई को नमाज़ी होने का हवाला दिया। लेकिन वो टस से मस नहीं हुए। हम शून्य
पर आऊट बल्लेबाज़ की मानिंद चले आये।
अपने एक कानूनची पड़ोसी से तराज़ू मांग लाये। हर सामान में पचास-सौ ग्राम कम मिला।
इनमें और बिंदू लाल में क्या फ़र्क। चोर-चोर मौसरे भाई।
हमें सबक मिला कि चाहे पांच वक़्त का नमाज़ी हो या सुबह-शाम मंदिर में घंटी बजाने
वाला टीकाधारी। सब बेमतलब। जिनकी नीयत ख़राब हो वो परदे के पीछे सब एक हैं। हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में हैं सब भाई-भाई।
अब कई दुकानें खुल गयी हैं। कंपटीशन बहुत है। जिससे मन हुआ, उससे सामान लिया। डिजीटल
तराज़ू हैं। चूना लगने की संभावना कम है। फिर भी अटेंशन देनी पड़ती है। सावधानी हटी नहीं
कि दुर्घटना घटी। दुकानदार को लंबी लिस्ट पकड़ा कर झौआ भर सामान नहीं उठाते।
जय हिन्द!
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