- वीर विनोद छाबड़ा
जब भी यूपी बोर्ड का इंटरमीडिएट और हाई स्कूल का रिजल्ट आता है, हम पुराने दौर में
चले जाते हैं।
उन दिनों रिजल्ट अलग अलग आया करते थे। हमें याद है जब हाई स्कूल का रिजल्ट आया
था। सन १९६५ का जून महीना। शाम का समय था। सुबह से ही टकटकी लगाए बैठे थे। एकाएक शोर
मचा। हम पलक झपकते ही तिमंजिले से नीचे आ गए। सब अख़बार वाले पर झपट पड़े थे। याद नहीं
कि अख़बार अठन्नी का था या एक रूपए का। लेकिन वास्तविक मूल्य कम होता था। ब्लैक में
बिका करता था। बहरहाल हमने भीड़ को चीरते हुए अख़बार खरीदा। भागे घर की ओर। हमारे पीछे-पीछे
आठ-दस लोग और थे। कुछ मोहल्ले के और कुछ बाहर के। सबको मुफ़्त में रिजल्ट देखना था।
सब घुस गए अख़बार में। पहले मैं, पहले मैं।
एक चीखा - मिल गया, मिल गया। दूसरा और तीसरा भी। हमें बहुत बाद में देखने को मिला। लेकिन हम नहीं चीखे।
हमारा तो नाम ही नहीं था। न सेकंड डिवीज़न में और न थर्ड डिवीज़न में। फर्स्ट डिवीज़न
देखने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। हमारे विद्यांत कॉलेज में मुश्किल से दो-चार
होते थे।
हम बहुत उदास हो गए। सहसा किसी ने हमारी पीठ पर हाथ रखा - हार्ड लक। बट डोंट वरी।
नेक्स्ट टाईम सही। वो हमारे पड़ोसी रमेश श्रीवास्तव थे। बाद में वो डॉक्टर बने।
हम रुआंसे होकर खिड़की के पास खड़े हो गए। बाहर आते-जाते और खुश होते हुए लोगों को
देखने लगे। मां ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया था। बड़ी बहन सांत्वना देने में लगी थी। छोटी
वाली खुश थी। और मारो मस्ती। पिटाई तो ज़रूर होगी। आने दो पिताजी को।
थोड़ी देर में पिताजी भी आ गए। बहुत खुश खुश। ज़रूर बेटे ने बड़ा नाम किया होगा। लेकिन
घर में पसरे सन्नाटे को देख कर वो समझ गए कि बेटे ने शर्मिंदा किया है।
बहुत देर तक कोई किसी से कुछ नहीं बोला था। फिर पिताजी ने बहुत उदास लहज़े में कहा
- लगता है घर की प्रोग्रेस रुक गई है। साल भर पीछे चले गए हैं हम सब।
हमने उस रात खाना नहीं खाया था। किसी ने पूछा भी नहीं। हम रात भर सुबकते रहे। सारे
घर को उदास कर दिया। ज़माने में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। हमें लगा कि हमने घर में
रहने का अधिकार खो दिया है। सुबह सुबह ही कहीं निकल जाऊंगा।
लेकिन सुबह हालात ही बदले हुए थे। पहले मां ने और फिर पिताजी ने हमें पुचकारा और
समझाया। ऐसा होता है, कोई बात नहीं। आगे ज्यादा मेहनत करना।
फर्स्ट डिवीज़न लाकर सबको हैरान कर देना।
हमें इससे वाकई हौंसला मिला। परिवार का बैकअप हो तो इंसान बड़े से बड़े अवसाद से
बाहर निकल सकता है, भंवर से बच सकता है, सागर पार कर सकता है और चांद पर भी पहुंच सकता है। नाकामी से नसीहत मिलती है। तरक्की
की नींव पुख्ता होती है।
लेकिन हम हैरान थे कि घर छोड़ने की बात तो हमारे दिल में थी, हमारे माता-पिता कैसे
समझ गए?
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17-05-2016 mob 7505663626
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Lucknow - 226016
आज की बुलेटिन भारत का पहला परमाणु परीक्षण और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteप्रेरक संस्मरण...सीख लेनी चाहिए आजकल के मां-बाप को जो बच्चों पर अपनी इच्छाएं लादते हैं।
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