-वीर विनोद छाबड़ा
दिल भी तेरा हम भी
तेरे। लुधियाने के सीधे-साधे धर्मेंद्र की यह पहली फ़िल्म थी। फिर अनपढ़, पूजा के फूल आदि कुछ
फ़िल्में की। लेकिन बात बनती नहीं दिख रही थी। टर्निंग पॉइंट बनी - आई मिलन की बेला।
हीरो राजेंद्र कुमार के साथ सेकंड लीड। धरम बहुत हैंडसम दिखे। मर-मिटीं पब्लिक और चल
निकले धरम।
फिर एक और टर्निंग
पॉइंट आया। ओपी रल्हन ने 'फूल और पत्थर' की स्क्रिप्ट लेकर
जीजा राजेंद्र कुमार को अप्रोच किया। राजेंद्र पहले ही रल्हन की 'प्यार का सागर'
और 'गहरा दाग' कर चुके थे। राजेंद्र बेहतरीन जेंटलमैन थे।
बोले - इसके लिए धरम फिट रहेंगे।
जाने क्यों रल्हन को
धरम से खुन्नस थी। मगर झक मार कर कास्ट करना पड़ा। फाइनांस तो जीजा कर रहे थे। नायिका
थी - मीना कुमारी उर्फ़ मीनाजी। मीनाजी के साथ धरम
इससे पहले 'मैं भी लड़की हूं' और 'पूर्णिमा' कर चुके थे और काजल
फ्लोर पर थी, जिसमें वो उनके भाई की भूमिका में थे।
कहते हैं 'फूल और पत्थर'
के दौरान धरम और मीनाजी में बनीं नज़दीकियां पहले अफ़साना बनीं और फिर फसाना। तब
तक मीनाजी का कमाल अमरोही से तलाक भी हो चुका था।
तलाक़ हो चुकने के बावजूद
कमाल अमरोही को मीनाजी की धरम से नज़दीकियां पसंद नहीं थीं। नतीजा 'पाकीज़ा' से धरम बाहर हुए राजकुमार
अंदर। मीनाजी बहुत नाराज़ हुई। उन दिनों राजकुमार बड़ा नाम थे और बेहतर एक्टर भी। 'आपके पैर बेहद खूबसूरत
हैं। इन्हें ज़मीन पर मत रखियेगा। मैले हो जायेंगे।' सदी का यह मशहूर डायलॉग
अगर राजकुमार की बजाये धरम ने बोला होता तो क्या होता? यक्ष प्रश्न है यह।
बहरहाल, फूल और पत्थर में आया
एक अहम शूट। सीन कुछ यों था। सख़्त बीमार मीनाजी बिस्तर पर लेटी हैं। रात का वक़्त है।
आंधी-तूफान का गज़ब माहौल है। नशे में बुरी तरह धुत्त गुंडे बने धरम चाल में घुसते हैं।
मीनाजी पर नज़र पड़ी। आंखों में वासना तैरी। उन्होंने अपनी कमीज उतारी। पहली बार किसी
हीरो की मांसल देह दिखी लोगों ने। फिर धरम ने वो किया जिसने हज़ारों-लाखों का दिल जीत
लिया। अपनी डर से कांपती बीमार मीनाजी पर डाल दी। और इस तरह एक पैदा हुआ - हीमैन।
लेकिन यह सब इतने आसानी
से नहीं हुआ। धरम ने यह शूट करने से मना कर दिया था कि मीनाजी बहुत सीनियर और आदरणीय
हैं। उनके सामने शर्ट उतारना महापाप है। मुझसे नहीं होगा। ओपी रल्हन और धरम में इस
पर खासी बहस हुई, झगड़ा हुआ। वैसे अंदर ही अंदर रल्हन खुश हुए कि इसी बहाने धरम
से छुटकारा मिल जायेगा। इधर मीनाजी के कान में बात पहुंची। उन्होंने धरम को बहुत डांटा।
मत भूलो कि तुम एक्टर हो। मेरा तुमसे कोई रिश्ता नहीं। तब जाकर धरम राजी हुए। और एक
इतिहास बना। प्रचार में यही सीन फिल्म के पोस्टर पर भी छापा गया। उस साल की सबसे कामयाब
फिल्म थी यह। लेकिन बेहतरीन परफॉरमेंस के बावजूद धरम को फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड नहीं मिला।
'फूल और पत्थर'
के बाद धरम ने मीनाजी के साथ मझली दीदी, चंदन का पलना और बहारों
की मंज़िल भी की।
कहा जाता है कि मीनाजी
बड़ी शिद्दत से धरम को चाहती थीं। उन्होंने धरम को बेरहम फ़िल्म इंडस्ट्री में जीने की
तमीज़ सिखाई। शीन-काफ़ और तल्लफ़ुज़ भी दुरुस्त किया। इसी दौरान धरम शेरो-शायरी के भी दीवाने
हुए। वो भी मीनाजी के बिना अधूरे थे। दिवंगत विनोद मेहता की मीना की ज़िंदगी पर लिखी
किताब में मीनाजी और धर्मेंद्र के संबंधों के बारे में खासा खुलासा है। कुल मिला कर
मीनाजी की ज़िंदगी में धरम कुछ इस तरह रच-बस गए कि वो धरम के बिना उनका जीना दुश्वार
हो गया।
मगर कुछ का कहना है
कि धरम ने मीनाजी से टूट कर मोहब्बत नहीं की। उन्होंने खुद को प्रमोट करने के लिए मीनाजी
का इस्तेमाल किया। जब मीनाजी को उनकी सख्त ज़रूरत थी तब वो हेमा के लिए उन्हें छोड़ कर
चले गए। पलट कभी हाल भी न पूछा। सच तो धरम जानते हैं। लेकिन समस्या यह है कि अपनी आत्मकथा
में लोग सही बात भी तो नहीं लिखते।
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Published in Navodaya Times dated 25 May 2016
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