-वीर विनोद छाबड़ा
कल एक बहुत पुराने मित्र मिलने आये। हम उन्हें प्यार से 'बाबू' कहते हैं। हम एक ही
दिन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के हेडक्वार्टर 'शक्ति भवन' में भर्ती हुए थे। बल्कि हम दो घंटे सीनियर थे।
संयोग से हम दोनों को एक ही सेक्शन में पोस्टिंग भी मिली और सीट भी अगल-बगल। हम
नए नए थे। किसी सीनियर के सामने सिगरेट पीना भी गुनाह समझते थे। सहमे-सहमे और सतर्क
रहते कि ऐसा न हो कि कोई ग़लती हो जाए और हमें बाहर कर दिया जाए। बड़ी मेहनत से मिली
नौकरी थी।
एक दिन क्या हुआ कि लंच का टाईम था। एक पार्टी होनी थी। कुछ लोग बाहर से भी आ गए।
बैठने के लिए कुर्सियां कम पड़ गयीं। सीनियर्स को जगह देने के लिए हम और बाबू कोने वाली
मेज़ पर फाईलें सरका कर बैठ गए। पार्टी में खाने-पीने के साथ सिगरेट का भी इंतज़ाम था।
मौके का फ़ायदा उठा कर हम दोनों ने भी सिगरेट भी सुलगा ली। और हाथ पीछे मोड़ लिए ताकि
सीनियर्स का लिहाज़ रहे।
तभी बाबू के बड़े भाई आ गए। वो उ.प्र. सचिवालय में सेक्शन अफ़सर थे। शक्ति भवन आये
थे किसी काम से। सोचा छोटे भाई को भी देख लें।
उस समय बाबू मेज़ पर बैठे चाय की चुस्कियों के साथ धुआं उड़ा रहे थे। बड़े भाई ने
बाबू को इस मुद्रा में बैठे देखा। और इधर बाबू भी अचानक उन्हें देख सकपका गए। फ़ौरन
सिगरेट फेंकी और खड़े हो गए।
चूंकि वो बाबू के बड़े भाई थे तो सबने ने उन्हें सम्मान दिया। पार्टी में उन्हें
भी शामिल कर लिया गया।
थोड़ी देर बाद पार्टी ओवर हो गयी। सब अपने काम पर लग लिए। बड़े भाई को बाबू बाहर
तक शिष्टाचारवश छोड़ने गए।
एक जगह गलियारे में सन्नाटा पाकर बड़े भाई ने बाबू को खींच कर एक तमाचा जड़ दिया।
बाबू सन्नाटे में आ गए। यह क्या हुआ? शायद सिगरेट पीने की सज़ा? बाबू के चेहरे पर क्वेश्चन
मार्क देख कर बड़े भाई ने जवाब दिया - यह मेज़ पर बैठने की सज़ा है। यह वो मेज़ है जिस
पर रखी फाईलें और टाइपराइटर रोज़ी रोटी देते हैं। यह बैड मैनर्स हैं, परंपराओं के विरुद्ध।
और अपने सीनियर्स की मौजूदगी में सिगरेट पीना भी गुनाह है। कुछ शिष्टाचार सीखो।
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