Sunday, May 8, 2016

जिसे बचना है वो करे फ़िक्र!

- वीर विनोद छाबड़ा
आज हमें मार्किट में एक भारी-भरकम महिला दिखीं। मस्त चाल और बिंदास अदाएं। निगाहें कहीं और कदम कहीं ओर। कब किससे टकरा जायें, पता नहीं। जिससे बचना है वो करे अपनी फ़िक्र।

हमें याद आई ऐसी ही एक कार वाली महिला। गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा। जब वो सड़क पर शान से कार लेकर निकलती थीं, तो बचने वाले खुद ही बचा करें। ऑफिस की पार्किंग में जनता-जनार्दन खड़ी रहती थी, इस इंतज़ार में कि कब मैडम आएं, अपनी कार पार्क कर लें और तब सब अपनी कुर्सी पर जाकर बैठें। क्योंकि मैडम का भरोसा नहीं होता था कि कार बैक करते हुए किसे ठोंक दें या रगड़ मार दें। लंच के बाद तो मैडम का कोई भरोसा नहीं होता था कि कब ऑफिस छोड़ दें। इसुरक्षा हेतु सब ससमय पहुंच जायें।
एक साहब का निजी सर्वे था कि ऑफिस में खड़ी ५०% कारें तो मैडम के कारण ही ठुकी और रगड़ी हुई हैं। वो एक अलग बात थी कार को बैक करके पार्क करने की आर्ट ज्यादातर मर्दों को भी नहीं मालूम थी।
कई बार ऐसा हुआ कि सावधानी हटी और दुर्घटना  हुई। सब उलझ जाते थे मैडम से कि ढंग से कार चलाना  क्यों नहीं सीखती हो?
मैडम अविलंब पलटवार करती - दूसरों को नसीहत देते हो, पहले खुद तो पार्क करना सीखो। बीच रास्ते में खड़ी करके चल देते हो। नाच न जाने आंगन टेढ़ा। बाप का घर हो जैसे?

तूतू-मैंमैं में थोड़ी प्रोग्रेस अभी शुरू होने को होती ही थी कि एक सशक्त लॉबी मैडम के पक्ष में लोहा लेने आ जुटती थी। खासा टैक्स फ्री एंटरटेनमेंट हो जाया करता था। फिर सहसा कोई याद दिलाता  - सर कटा डालो आपस में लड़-झगड़ कर। मैडम तो कबकी खिसक गई।
उस ज़माने में कई कारें घायल होकर गैराज पहुंच गईं और दो-तीन बंदे हॉस्पिटल। 
जब ऐसी घटनाओं का दौर बढ़ गया तो प्रशासन ने पार्किंग व्यवस्था संभालने के लिए दो अदद सिक्योरिटी गार्ड्स के रख दिए।

उन दिनों यह एक लतीफ़ा मशहूर हुआ करता था कि आज मैडम बिना किसी को ठोके और रगड़े घर पहुंच गईं। कुछ का कहना था कि यह लतीफ़ा नहीं ख़बर है। 
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