-वीर विनोद छाबड़ा
'मेरा गांव मेरा देश' (१९७१) की स्क्रिप्ट आशा पारिख ने जब पढ़ी थी तो उन्हें अहसास हुआ कि यह फिल्म उन्हीं
के लिए है। निर्देशक राजखोसला का भी यही ख्याल था। लेकिन फिल्म का बनना नदिया की धार
है। जिधर मिले रस्ता, उधर मुड़े धारा। क्या बनाना चाहा और क्या बना। स्वयं निर्देशक राज खोसला भी हतप्रद
थे। फ़िल्म सुपर-डुपर हिट हुई। मगर इसका श्रेय आशा को नहीं बल्कि एक कम जानी-पहचानी
लक्ष्मी छाया को मिला।
यों तो इसके सभी गाने हिट थे, लेकिन जान बना यह गाना...मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए...और इसे लक्ष्मी छाया पर
फिल्माया गया था। बच्चा बच्चा जान गया था उसे। इसके अलावा दो और हिट गाने भी लक्ष्मी
छाया के हिस्से आये....हाय शरमाऊं किस-किस को बताऊं अपनी प्रेम कहानियां…आया आया अटरिया पे
कोई चोर....
बताया जाता है कि राज खोसला समझ गए थे आशा की बजाये अगर लक्ष्मी छाया के किरदार
पर फोकस किया जाए तो फिल्म को ज्यादा फायदा होगा। यों कभी कभी ऐसा भी होता है कि बाज़
छोटे अदाकारों को परफॉर्म करने का मौका मिलता है तो बड़े-बड़े पीछे छूट जाते हैं। और
यही फैक्टर फिल्म के हिट होने सा सबब बनता है। यों लक्ष्मी छाया की एक और छोटी सी पहचान
थी। एनसी सिप्पी की रहस्यमई 'गुमनाम' (१९६५) में लक्ष्मी पर फिल्माया एक मास्क पॉप बहुत पॉपुलर हुआ था - जान पहचान हो, जीना आसान हो.…बरसों बाद ये गाना
२००१ में रिलीज़ हॉलीवुड फिल्म 'घोस्ट वर्ल्ड' की ओपनिंग में जस का
तस रखा गया। बहरहाल इस हिट मास्क पॉप के बावजूद लक्ष्मी छाया नायिका की सहेली के छोटे-मोटे
रोल से आगे नहीं बढ़ सकी। और मज़े की बात ये थी ये नायिका ज्यादातर आशा पारेख ही रही।
दुर्भाग्य को छुड़ाना मुश्किल होता है। मार दिया जाए....गर्ल लक्ष्मी छाया बेहतरीन
परफॉरमेंस के बावजूद कोई तीर नहीं मार पायी। उसे 'रास्ते का पत्थर' में ज़रूर अच्छी फुटेज
मिली। उसके नशे में हर वक़्त चूर लड़की के किरदार को क्रिटिक्स ने बहुत सराहा। इसमें
अमिताभ बच्चन नायक थे और नवोदिता नीता ख्याणी नायिका। लेकिन बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड
नाकामी ने लक्ष्मी छाया के अरमानों पर पानी फेर दिया। उसकी पहचान नायिका की सहेली से
आगे नहीं बढ़ पायी।
हर फ़िल्मी और गैर फ़िल्मी शख्स ये मानता था कि वो बहुत अच्छी डांसर तो है ही, उसमें ज़बरदस्त एक्टिंग
पोटेंशियल भी है। डांसर-एक्ट्रेस का उन दिनों बोलबाला था। मगर वो हेलेन नहीं बन पायी।
उसे सह-नायिका के बड़े रोल इसलिए भी नहीं मिले क्योंकि स्थापित नायिकाओं को डर था कि
लक्ष्मी छाया की 'मेरा गांव...' जैसी परफॉरमेंस अगर रिपीट हो गई तो उन्हें तो ग्रहण लगा समझो।
लक्ष्मी छाया ने तीसरी मंज़िल, प्यार का मौसम, नौनिहाल, बहारों के सपने आदि कुल ५५ फिल्मों में काम किया और लगभग हर फिल्म में उसे नोटिस
भी किया गया। बस बड़ा काम नहीं मिला,
सिर्फ वादे ही मिले। इसका कारण शायद यह अफ़वाह भी रही कि वो नशीले
पदार्थ का सेवन करने वालों की संगत में रहती है।
लक्ष्मी छाया ने सत्तर के दशक के बाद फिल्मों से गुडबाई करके एक डांसिंग स्कूल
खोला। ये अच्छा चला भी। वो साईं बाबा की ज़बरदस्त भक्त हो गई थीं। साईं बाबा पर टीवी
सीरियल बना कर अपनी अगाध श्रद्धा को अभिव्यक्त करना चाहती थीं। मगर फाइनेंस की समस्या
के कारण उनका ये ख़्वाब अधूरा रह गया।
०७ जनवरी १९४८ को जन्मी लक्ष्मी को कैंसर ने ०९ मई २००५ को महज़ ५६ की उम्र में
लील लिया। कतिपय मीडिया में एक छोटी सी दो पंक्तियों की ख़बर छपी बस। शायद मीडिया को
जानकारी ही नहीं थी कि एक मार दिया...गर्ल लक्ष्मी छाया भी होती थी।
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Published in Navodaya Times dated 18 May 2016
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साइड हिरोइन के रूप में लक्ष्मी छाया की भूमिका से लेकर पीड़ा तक की आपने बहुत अच्छी अभिव्यक्ति की। आपके लेखन व अभिव्यक्ति कला को सलाम..
ReplyDeleteसाइड हिरोइन के रूप में लक्ष्मी छाया की भूमिका से लेकर पीड़ा तक की आपने बहुत अच्छी अभिव्यक्ति की। आपके लेखन व अभिव्यक्ति कला को सलाम..
ReplyDeletebahut acchi jankari vir ji
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