Monday, May 23, 2016

अफ़सर, चूहा और पड़ोसी

-वीर विनोद छाबड़ा
और बरसों बाद आख़िर वो दिन आ ही गया। बंदा प्रमोट हुआ। सीधा डिप्टी। कदम ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। पद की गरिमा भी कोई चीज़ होती है। कई तरह के प्रोटोकॉल अपनाने पड़े। बढ़िया एसी युक्त कमरा। टेबुललैंप, कालबेल और द्वारे चपरासी। बिना पूछे प्रवेश निषेध। साहब बिज़ी हैं। पर्ची भिजवाते हैं। समझाया गया कि नमस्ते का जवाब बोल कर नहीं देना है। सिर्फ़ हौले से सर हिलाना है। महिला की बात दीगर है। देख कर रुक जाओ। बाअदब हलकी सी मुस्कान भी साथ में छोड़ो। हाल-चाल पूछो। आख़िर स्त्री-सशस्त्रीकरण का ज़माना है। क्या मालूम, कब कौन बिदक जाए और यौन उत्पीड़न का केस दायर कर मिट्टी पलीत करा दे।

लेकिन बंदे को घर में इसका कोई लाभ नहीं मिला। मेमसाब ने ताना मारा - अफसरी को चाटें क्या? पगार तो एक इन्क्रीमेंट ही बढ़ी।
अफसर बनने के बाद आज पहली सुबह है। मेमसाब ने पहले ही क्लीयर कर दिया था कि अफसरी का प्रोटोकॉल घर पर नहीं चलेगा। बरसों से चल रहे क्रम के अंतर्गत चूहेदानी पकड़ा दी हाथ में। खन्ना के मोहल्ले में चूहा छोड़ आओ। ध्यान रहे कि बिल्ली के सामने नहीं डालना। हत्या का पाप चढ़ेगा। अपने गणेश जी सवारी है।  
बहरहाल, उस सुबह-सुबह रास्ते में कई लोग मिले। गुप्ताजी तो मानों चूहेदानी मेंघुस गए। ये तो बहुत बड़ा है। अफसर का चूहा जो ठहरा! त्रिवेदीजी ने छींटा मारा। अब चूहे के साथ आप भी फंसे। वर्माजी ने तो बंदे की गैरत को ही चुनौती दे मारी। वाह! तो प्रमोशन के बाद भी चूहा छोड़ने जा रहे हैं। ब्रेकिंग न्यूज़। अरे डिप्टी साहब, दफ्तर से चपरासी बुला लिया होता। 
बंदा बिदकता है कि किस प्रोटोकॉल में लिखा है कि अफसर चूहा छोड़ने नहीं जा सकता।
बहरहाल, बंदा दफ़्तर पहुंचा। सुबह किसी दिलजले बाबू ने बंदे को चूहेदानी के साथ देख लिया था। परिणामतः न्यूज़ वायरल हो गई। शाम तक उसकी नाक में बाबू लोग दम करते रहे। हर पांच मिनट पर बाहर से भी किसी न किसी का फ़ोन आता रहा। सबकी ज़बान पर एक ही प्रश्न था - सुना है सर, आप चूहा छोड़ने जा रहे थे? एक बड़े अफ़सर ने क्लास ही ले ली। अभी कल ही प्रोमोट हुए हैं। पद की गरिमा का ध्यान रखें। और ख्याल रहे कि ऑफिस की इंटरनेशन रेपुटेशन है। किसी ने तस्वीर खींच कर नेट पर वायरल कर दी तो बहुत भद्द होगी।

बंदे ने तय कर लिया कि चूहेदानी में फंसा चूहा छोड़ने वो नहीं जाएगा। चाहे कुछ भी हो जाए। लेकिन प्रेतात्माएं आसानी से पीछा नहीं छोड़ती हैं। पत्नी ने साफ कह दिया - आप नहीं तो और कौन जायेगा? मैं जाती हुई अच्छी लगूंगी? बच्चे भी नहीं जा सकते। उनकी पढाई-लिखाई के दिन हैं। डिस्टर्ब करना ठीक नहीं।
बात तो ठीक थी। मगर जहां चाह, वहां राह। दूसरा तरीका मिल गया। बंदा सुबह मुंह अंधरे उठा। मुंह पर गमछा लपेटा और चूहा नेक्स्ट-डोर पड़ोसी के घर छोड़ दिया। एक दिन बंदे ने देखा कि पड़ोसी उसके घर चूहा छोड़ रहा है। दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए। एक ही कश्ती के मुसाफ़िर निकले। चूहों ने भी थूथन उठा कर शुक्रिया कहा।
और फिर ज़िंदगी आराम से गुज़रने लगी।
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Published in Prabhat Khabar dated 23 May 2016
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