- वीर विनोद छाबड़ा
छोटा कद, बाली उमर। नाम
नलिनी जयवंत और चाहत फिल्मों में काम करने की। मौसेरी बहन शोभना समर्थ के तरह नाम कमाने
की। पिता और भाईयों ने बहुत समझाया कि उससे तुलना मत कर। वो अच्छे लोग नहीं हैं। लेकिन
वो अडिग रही। पिता ने पीटा और फिर भाईयों ने भी। उसने विद्रोह कर दिया। दूसरों के सपने
पूरे करने के लिये अपनी कुर्बानी क्यूं?
पहली ही फिल्म ‘बहन’ (१९४१) उसे सफलता
मिली। मगर पहचान मिली १९४८ में जब दिलीप कुमार और नरगिस के साथ नलिनी ने 'अनोखा प्यार' में तहलका मचाया।
प्रेम त्रिकोण की इस फिल्म में वो कुर्बान हुई। आंसूओं और तालियों का सबसे ज्यादा हिस्सा
मिला। इस बीच सामाजिक सुरक्षा के मद्देनज़र नलिनी ने उम्रदराज़ प्रोड्यूसर वीरेंद्र देसाई
से शादी कर चुकी थी। इसके साथ ही नलिनी त्रासदी का पर्याय बनने की राह पर चल पड़ी।
दिलीप कुमार के साथ एक
और कामयाब फिल्म 'शिकस्त' आई। लेकिन जोड़ी
जमी अशोक कुमार के साथ। लगातर तो हिट फ़िल्में - समाधी और संग्राम। निजी ज़िंदगी में
भी अशोक कुमार के साथ उनका रिश्ता दस साल तक चला। निराश नलिनी ने एक्टर -डायरेक्टर
प्रभुदयाल से शादी कर ली।
नलिनी का जादू पांच के
दशक में सर चढ़ कर खूब बोला। नौजवान में उन पर फिल्माए गाने ने तहलका मचाया - ठंडी हवाएं, लहरा के आएं...
और मुनीम जी में वो देवानंद के साथ थीं - जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछुड़
जाने को.... देवानंद के साथ नलिनी की एक और यादगार फिल्म मिली - कालापानी (१९५८)। तवायफ की भूमिका में नलिनी ने - नज़र लागी राजा तोहे बंगले पे....। इसके लिए उन्हें
श्रेष्ठ सह-नायिका का फिल्मफेयर पुरुस्कार भी मिला।
Nalini in Kaalapaani |
नलिनी के निजी जीवन में
बहुत उथल पुथल रही। मगर परफॉरमेंस टॉप-क्लास रही। इस दौरान महज़ ५३ फिल्में आईं। अशोक
कुमार, दिलीप कुमार, देवानंद, भारत भूषण, किशोर कुमार, अजीत, राजेंद्र कुमार, शम्मीकपूर, सुनील दत्त आदि
उस दौर के तमाम बड़े नायकों के साथ उसकी केमेस्ट्री बढ़िया रही। माना जाता था कि उनमें
फिल्म लिफ्ट करने की कूवत है। बतौर नायिका आखिरी फिल्म ‘बांबे रेस कोर्स' (१९६५) थी। यह बुरी
तरह फ्लॉप रही। कई जगह रिलीज़ भी नहीं हो पायी।
नलिनी के जीवन में 'अमर रहे ये प्यार' का बहुत महत्व
है। इसे पति प्रभुदयाल ने निर्देशित किया। निर्माता थे मशहूर कामेडियन- राधा किशन।
लेकिन सेंसर के झमेले में फंस गई। उन्हें सांप्रदायिक दंगों का अंदेशा था। जैसे-तैसे
रिलीज़ हुई तो औंधे मुंह गिर पड़ी। परिणाम बहुत ख़राब रहा। राधा किशन ने आत्महत्या कर
ली और प्रभुदयाल एक बार फिर बोतल में घुस गये। नलिनी कुछ नहीं कर सकीं।
इसके बाद नलिनी भुला दी
गई। कई साल बाद १९८० में एक हमदर्द ने तन्हा जीवन से उन्हें बाहर निकाला। वो राजेश
खन्ना-हेमा मालिनी की ‘बंदिश’ में दिखीं। फिर
१९८३ में रिलीज़ नास्तिक में अमिताभ बच्चन की मां बनीं। लगा जैसे नलिनी लौट आयी है।
लेकिन जाने किस मोड़ पर क्या ग़लत हुआ कि वो लौट गयी अपनी तन्हाईयों में।
नलिनी का कोई स्थायी साथी
नहीं था जो उसके मन को पढ़ सके, उसके दुख और अकेेलेपन को
शेयर कर सके। मां-बाप, भाई-बहन और परिवार, दोस्तों सभी ने
ठुकराया। पहले पति वीरेंद्र देसाई से नहीं पटी और दूसरा दूसरा पति प्रभुदयाल अपने ही
ग़म से खाली नहीं रहा।
नलिनी का वक़्त खत्म हो
चुका था। वो असुरक्षा की भावना से पीड़ित थी। उन्होंने दो कुत्ते पाल रखे थे। सिर्फ़
उन्हीं से वो बात करती थी। उनकी सेहत का भी बहुत ध्यान रखती थीं। इस दौरान उन्हें पैर
में चोट लगी। एक चिंतित पड़ोसी ने डाक्टर की मदद का प्रस्ताव रखा। मगर नलिनी ने मना
कर दिया।
२२ दिसंबर २०१० को चेंबूर
के एक बड़े से बंगले में पुलिस और शव एंबुलेंस की मौजूदगी से अड़ोसी-पड़ोसी चौंके। पता
चला कि नलिनी की दो दिन पहले मृत्यु हो चुकी है। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। उस समय
वो तन्हा थीं। वो किसी को आवाज़ नहीं दे सकी थीं। उनके कुत्ते इधर-उधर भटक रहे थे। कुछ
लोगों को यह जान कर ताज्जुब हुआ कि यह लाश गुज़रे वक्त की बड़ी-बड़ी आंखों वाली शोख़ अदाकारा
नलिनी जयवंत की है। एंबुलेंस के साथ न कोई रिश्तेदार था और न मित्र। बाद में किसी रिश्तेदार
ने उनके शव को पहचानने की रस्म पूरी की और अंतिम संस्कार किया।
१८ फरवरी १९२६ को जन्मीं
नलिनी की मृत्यु पर सिर्फ पुराने सिनेमा से जुड़े मीडिया ने शोक व्यक्त किया।
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Published in Navodaya Times dated 21 May 2016
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