Monday, May 2, 2016

शक़ का कोई ईलाज नहीं।

- वीर विनोद छाबड़ा
वो मेरा दोस्त था। एक सहकर्मी पर उसका दिल आ गया। वो भी उसे पसंद करने लगी। दोनों एक-दूजे के लिए ही बने थे। जल्दी ही विवाह बंधन में बंध गए।

कुछ दिन सब ठीक चला। लेकिन धीरे-धीरे हंसते-हंसते लोट-पोट करने वाले चुटकुले/किस्से/कहानियां मेरे मित्र के रोज़ाना के अजेंडे से गायब होने लगे। हंसी की महफ़िल में उसके ठहाके नहीं गूंजते थे। बस मुस्कुरा भर देता। धीरे-धीरे ये भी खत्म हो गया। सेंस ऑफ़ ह्यूमर तो बिलकुल ही गायब हो गया। बात-बात पर बिगड़ने लगा।
मेरा यार था वो। मैं उसकी व्यथा कुछ-कुछ समझ रहा था। परंतु उसके मुहं से सुनना चाहता था। एक दिन मैंने जोर देकर कहा - बता दे अपने दिल की बात। हल्का हो जायेगा। तुझसे दो-तीन साल बड़ा हूं। कुछ सलाह भी दे सकता हूं।
वो बोला - दोस्त, शादी से पहले तो उसके बारे में लोग जो भी बकवास करते थे मैं बर्दाश्त कर लेता था। प्यार अंधा जो होता है। लेकिन अब नहीं झेल पा रहा हूं। अब वो मेरी पत्नी है। फिर भी लोग बकवास करते हैं। उसके बारे में उलटी-सीधी बातें करते हैं।
मैंने कहा - तुझे यकीन है उस पर?
वो बोला - हां। यकीन तो है। मगर डर लगता है, कहीं कुछ सच न निकले।
वाकई बड़ी दुविधापूर्ण स्थिति थी। मैंने कहा - तेरी पत्नी का स्वाभाव तो अब भी जस का तस है। सबसे हंस कर, मुस्कुरा कर बात करती है। मुझे तो कोई फर्क नहीं दिखता है। तो तुम ऐसे क्यों हो? वो तुमसे नहीं पूछती कि तुम ऐसे क्यों हो गए हो?
वो बोला - पूछा कई बार। मैंने बताया भी। उसने साफ़-साफ़ कहा कि शक़ का ईलाज़ दुनिया के किसी भी डॉक्टर के पास नहीं है।
मैंने पूछा - किसी विशेष पर शक़ है तुम्हें।
वो हिचकिचाते हुए बोला - हां, है तो। लेकिन पक्का नहीं।
मैंने कहा - तो भाई, जा कर जासूसी कर ले।
वो बोला - कर तो लूं। लेकिन अगर बात सच निकली तो औरत जात से नफ़रत हो जायेगी और ग़लत निकली तो ख़ुद से नज़रें नहीं मिला पाऊंगा। और अगर उसे पता चल गया कि मैंने जासूसी की है तो वो मुझसे नफ़रत करने लगेगी और शायद मुझे छोड़ कर ही चली जाए। 

मैंने उसे सलाह दी कि मनोविज्ञान के माहिर से मशविरा ले ले।
अगले दिन बाद वो मिला मुझसे। बहुत खुश था वो, पहले जैसा। इससे पहले कि मैं कुछ पूछता वो बोला - यार मेरी बीवी एक आम बीवी जैसी निकली। उसे मुझ पर शक़ है कि पुरानी क्लास फैलो से अभी भी मिलता हूं। यार, मैं समझ गया यह दुनिया है ही ऐसी। एक-दूसरे से जितना प्यार करते हैं उतना ही एक-दूसरे पर अधिकार जमाते हैं और इसी चक्कर में बेवज़ह शक़ी हो जाते हैं। मिलता कुछ भी नहीं है।
आज दोनों के दो बच्चे है और उनके भी बच्चे। किसी महफ़िल में जाते हैं तो अपनी-अपनी मंडली में व्यस्त रहते हैं, लेकिन कनखियों से नज़र रखते हैं।
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