- वीर विनोद छाबड़ा
हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब व्यक्ति की भावनाओं की क़द्र करना। बच्चों के प्रति तो विशेष स्नेह। गांधी
जी की यह विशेषतायें रही हैं।
एक बार गांधी जी किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने मद्रास गए।
वहां स्टेशन पर एक छोटे से गरीब बच्चे ने उन्हें देखा। अरे गांधी बाबा! वो भाग
कर उनके पास गया। उनका हाथ पकड़ लिया।
गांधी जी ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा।
बच्चे के समझ में नहीं आया कि वो इस प्यार का आभार कैसे प्रकट करे। अचानक उसे ख्याल
आया कि उसकी जेब में एक इस्तेमाल की हुई छोटी सी पुरानी पेंसिल है। उसने झट से निकाल
कर गांधी जी वही भेंट कर दी।
गांधी जी ने उस बच्चे की आंखों में झांका, गाल सहलाये और वादा
किया - मैं इसे फेंकूंगा नहीं। हमेशा अपने सीने से लगा कर रखूंगा।
बच्चा बहुत खुश हुआ। उसकी आंखें भर आयीं। उसने गांधी जी के पैर छुए। और फिर भीड़
में गुम हो गया।
कुछ महीनों बाद गांधी जी के खास मित्र ने देखा कि बापू बड़ी शिद्दत से कुछ तलाश
रहे हैं। उनके चेहरे पर फ़िक्र की लकीरें हैं।
मित्र ने पूछा - बापू, कुछ खो गया है क्या?
गांधी जी ने कहा - हां, एक छोटी सी पेंसिल नहीं दिख रही है। अभी कल ही तो यहीं रखी थी। आज नहीं है। न जाने
कौन ले गया है?
मित्र हंसा। उसने अपनी जेब से नयी पेंसिल निकाल कर गांधी जी के हाथ में थमा दी
- उसे जाने दीजिये। यह लीजिये बिलकुल नयी पेंसिल। और काम चलाइये।
गांधी जी ने कहा - नहीं, मुझे वही पुरानी पेंसिल ही चाहिए। उससे मेरी भावनायें जुड़ी हैं। मेरे एक नन्हें
मित्र ने उपहार में मुझे दी थी।
ये सुनते ही वो मित्र भी बापू के साथ मिल कर पेंसिल ढूंढ़ने में जुट गया।
थोड़ी देर में वो मनवांछित पेंसिल मिल गयी। इधर गांधी जी को भी राहत मिली।
नोट - गांधी जी किसी भी भेंट की बे-क़द्री नहीं करते थे। और विशेषकर बच्चों की भेंट
की हुई तो बिलकुल नहीं। चाहे छोटी हो या बड़ी। बापू के ऐसे किस्से स्कूल के दिनों में
हमारे मास्टर गंगा प्रसाद शर्मा जी अक्सर सुनाया करते थे।
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