Friday, December 30, 2016

गुरू गुरू होता है!

- वीर विनोद छाबड़ा
कई बार सफलता का जादू सर पर इतना ज्यादा चढ़ जाता है कि चेला अपने गुरू को ही भूल जाता है। हद तब होती है जब गुरू को चेला कदम-कदम पर उपेक्षित और अपमानित करता है।

ऐसा ही किया था एक नामी पहलवान ने। देश विदेश में उसने कई बड़ी कुश्तियां जीतीं। हर जीत के बाद उसकी सफलता का राज़ पूछा गया। और साथ में गुरू का नाम भी। लेकिन चेला इसका श्रेय स्वयं को ही देता - मेरी ज़िंदगी में मेरा कोई गुरू नहीं हुआ। सब मेरी मेहनत और ईशवर की कृपा है।
गुरूर ने उसे असभ्य भी बना दिया। उसने अपने गुरू को गालियां भी देनी शुरू कर दीं।
गुरूजी के कान में शिष्य के स्वयं को फन्ने खां समझने के चर्चे पहुंचा करते थे। एक दिन उस चेले की गुरूजी से भेंट हो गयी।
गुरूजी अपने शिष्य के हितैषी थे। उन्होंने शिष्य को समझाया - गुरूर इंसान को कमज़ोर बनाता है।
इस पर शिष्य क्रोधित हो गया - मेरी प्रसिद्धि आपको रास नहीं आ रही है।
गुरू ने फिर समझाया - ऐसा कतई नहीं। बल्कि मुझे तो तुम पर फ़ख्र है कि तुम मेरे सिखाये गुरों के सहारे कामयाबी की बुलंदी को छू रहे हो।
इस शिष्य और भी भड़क गया - इसमें आपका कोई योगदान नहीं है। मैं जो कुछ हूं अपने दम पर हूं। हिम्मत हो तो मुझसे मुक़ाबला करें। अपनी श्रेष्ठता साबित करें। मेरा चैलेंज है कि एक ही पटखनी में धरती सुंघा दूंगा।
अब गुरू जी को यकीन हो गया कि आसमान पर उड़ रहे शिष्य को ज़मीन पर उतारना ज़रूरी है। उन्होंने चुनौती स्वीकार की - ठीक है। अगर तुम्हें स्वयं पर इतना ज्यादा विश्वास है तो फिर हो जाए मुक़ाबला। 
गुरूजी को सब चेलों ने समझाया - आप बहुत वृद्ध हो और वो आपका घमंडी लहीम शहीम शिष्य है। पल भर में आपकी हड्डी-पसली एक करके चूरमा बना देगा।
लेकिन गुरू जी नहीं माने।
कुश्ती के लिए दिन और समय तय हुआ। विशेष विशाल अखाडा बनाया गया। मुनादी पिटवा दी गयी। गुरू और चेले की इस ऐतिहासिक फ्री स्टाइल कुश्ती को देखने दूर दूर से हज़ारों की संख्या में कुश्ती प्रेमी जमा हुए।
सबको वृद्ध गुरूजी पर दया आ रही थी - गुरूजी खामख्वाह जान देने पर तुले हैं।
घंटा बजा। कुश्ती शुरू। पूरे आत्म विश्वास से लबरोज़ लहीम-शहीम चेले ने झपट्टा मारा और पल भर में गुरूजी को दबोच लिया।
गुरू समर्थकों ने डर कर आंखें बंद कर लीं - भाया, गुरू तो गियो।
लेकिन अगले ही पल एक ज़बरदस्त चीख़ सुनाई दी। मगर यह आवाज़ तो गुरूजी की है नहीं।
दर्शकों ने आंखें खोलीं। दंभी चेला चारों खाने चित्त पड़ा था। सब हैरान - गुरूजी ने यह कमाल कैसे कर दिखाया?

दरअसल, गुरूजी ने चेले का टेंटुआ दबा दिया था।
गुरूजी आगे बढ़ कर चेले को उठाया। चेला शर्मिंदा था। उसने चरणों पर गिर कर माफ़ी मांगी।
गुरूजी ने चेले को उठा कर गले लगाया - याद रखो बच्चे, गुरू गुरू होता है। मैंने एक यही दांव बचा रखा था, तुम्हारा दंभ को तोड़ने के लिए।
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नोट - बरसों पहले नानी-दादी से सुनी-सुनाई इस कथा की याद आज पुनः करने की ज़रूरत आन पड़ी है। क्योंकि आज चाहे राजनीति हो या व्यापार या शिक्षा या राजकाज, समस्त क्षेत्रों में ओल्ड गार्ड्स को आउटडेटेड मानते हुए उनके तजुर्बों का लाभ नहीं उठाया जा रहा है बल्कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। डंपयार्ड में डाला जा रहा है। बाक़ी मतलब पाठक समझ ही रहें हैं। 
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