Wednesday, December 7, 2016

भूख से बेहोश हो गए थे धर्मेंद्र

-वीर विनोद छाबड़ा
उम्र उन्नीस साल की थी तो शादी हो गई। लेकिन अब भी सपने देखता था, सिनेमा का हीरो बनूंगा। 
दोस्त को मज़ाक उड़ाते थे। कुश्तियां लड़ अखाड़े विच। अच्छा पहलवान बनेगा। एक दिन मां से मन की बात की। मां ने कहा - इसमें पूछने की क्या बात है? किसी ने रोका है क्या? बन जा हीरो।
एक दिन एक दोस्त ने अख़बार की कटिंग दी - फिल्मफेयर टैलेंट हंट कंटेस्ट। लगा किस्मत के दरवाज़े खुलने ही वाले हैं। कुछ तस्वीरें भेज दीं, जिसमें वो बहुत हैंडसम दिख रहा था।
दोस्तों ने भी कहा - सोणा सोणा, गबरू जवान दिख रहा है तू ।
और सचमुच कुछ दिन बाद चिट्ठी आई - आ जाओ। ऑडिशन और इंटरव्यू के लिए। और उस नौजवान ने मां से कुछ रूपए लिए। थर्ड क्लास की टिकट खरीदी और लुधियाने का एक सीधा-सादा नौजवान पहुंच गया सपनों की नगरी बंबई। ऑडिशन हुआ। इंटरव्यू भी। उसे फिल्मफेयर का न्यू टैलेंट अवार्ड मिला।
इस नौजवान बंदे का नाम था धर्मेंद्र। सबने कहा - वाह वाह। बल्ले बल्ले। अब तेरे को काम की कमी नहीं रहेगी। रास्ते खुल गए हैं। जिधर जाएगा कामयाबी तेरे कदम चूमेगी।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं। टैलेंट कांटेस्ट से जुड़े किसी भी प्रोड्यूसर ने नहीं बुलाया। इस द्वारे से उस द्वारे, वो भटकता फिरा। किसी ने कहा, तू यहां क्या करने आ गया? पिंड जाकर कुश्ती लड़। किसी ने मज़ाक करते हुए आश्वासन दिया, जब पहलवान का रोल होगा तो तुझे बुला लेंगे। किसी ने ठंड रखने की सलाह दी।
थक गया धर्मेंद्र। बड़ी बेरहम दुनिया है। जेब में पैसे भी ख़तम हो गए थे। दोस्तों से काफी उधार ले चुका था। भूखा-प्यासा। लेकिन तय किया - बस अब और नहीं। किसी से नहीं मांगूंगा। बोरिया बिस्तर समेट घर वापसी की तैयारी कर ली। टिकट के लिए पैसे उधार लिए। तभी अचानक पेट में बेहद ज़ोर से दर्द उठा। वो गिर पड़े। दोस्त उसे अस्पताल की इमेरजेंसी में ले गए। डॉक्टर ने कायदे से परीक्षण किया। लेकिन पर्चे पर लिखा - इसे कोई बीमारी नहीं।
दोस्त हैरान। धर्मेंद्र परेशान। डॉक्टर ने बताया - इसे भूख की बीमारी है। पेट बिलकुल खाली है। डीहाइड्रैशन हो रहा है। फ़ौरन इसे कुछ खिलाओ-पिलाओ। और तुरंत खाने-पीने का इंतज़ाम किया गया। इस तरह जान बची धर्मेंद्र की।
कुछ ही दिनों बाद धर्मेंद्र दोस्तों की मेहरबानी से खा-पीकर भले-चंगे हो गए। इन्हीं दोस्तों में उनके साथ संघर्ष कर रहे अर्जुन हिंगोरानी भी हुआ करते थे। लेकिन वापस जाने की जिद्द पर अड़े रहे। बस तैयारी की ही थी कि एक फिल्म मिल गई।
हुआ यों कि अर्जुन को बतौर डायरेक्टर एक फिल्म मिली। प्रोड्यूसर नया था। कम पैसे वाला नया हीरो चाहिए था। अर्जुन ने धर्मेंद्र का नाम सुझाया। किस्मत बुलंद थी। फिल्म का नाम था - दिल भी तेरा हम भी तेरे।

आगे की कहानी तो इतिहास है। धर्मेंद्र चमकता सितारा बन गए। हीमैन से गरम-धरम और धरम पा'जी तक का लंबा सफ़र तय किया। इस पर फिर कभी सही।
लेकिन अर्जुन से धरम पा'जी की यारी नहीं टूटी। अर्जुन हिंगोरानी की हर फिल्म में धर्मेंद्र रहे। कब क्यों और कहां, कहानी किस्मत की, खेल खिलाड़ी का, कातिलो के कातिल, करिश्मा कुदरत का, सल्तनत, कौन करे क़ुरबानी और कैसे कहूं कि प्यार है।

अब यह बात दूसरी है कि अर्जुन ने पिछले १२ साल से कोई फ़िल्म नहीं बनाई है और दूसरों को सुखी रहने के तरीके बताया करते हैं। इधर धरम पा'जी काफ़ी ढीले-ढाले रहे। मुद्दत बाद पिछले साल 'सेकंड हैंड हस्बैंड' में दिखे। कॉमेडी रोल था। धरम पा'जी की खूब तारीफ़ हुई। मगर फिल्म एवैं ही निकली।
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Published in Navodaya Times dated 07 Dec 2016
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