-वीर विनोद छाबड़ा
आजकल के लड़कों की हेयर स्टाइल देखता हूं तो हमें अपने ज़माने का गुम्मा-कट हेयर
कटिंग सैलून याद आता है।
ठीक-ठाक ब्राइट हेयर कटिंग सैलून में बाल कटाई चवन्नी में। सड़क किनारे गुम्मे पर
बैठा कर कटिंग दुअन्नी में। दुअन्नी की बचत। लेकिन स्टाईल उनकी पसंद की। बार-बार कभी
दायें तो कभी बायें और कभी-कभी अबाउट टर्न। परेशान बहुत करता था नाई।
बड़े-बुज़ुर्ग कहते - सर पर कटोरा रख कर बाल कटवाये हैं क्या? कलम कहां गयी? आमतौर पर पुलिस और
रंगरूटों की कटिंग ऐसी ही होती थी।
बड़ी ख़ुशी होती है यह देख कर कि यह गरीबों के गुम्मा-कट हेयर कटिंग सैलून अभी भी
हैं। बस अब गुम्मे की जगह एक अदद कुर्सी ने ले ली है।
उस ज़माने में देवानंद और दिलीप कुमार स्टाईल हेयर कट की धूम थी। बड़े बाल रखे जाते।
बस कान ज़रूर दिखाई दें।
नाई पूछता था - मोटी कटिंग या महीन।
आमतौर पर मोटी कटिंग पसंद की जाती। कैंची का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल। देर बहुत
लगती थी। डेढ़-दो महीने बाद फिर जाना होता था।
महीन कटिंग बोले तो छोटे छोटे बाल। मशीन का ज्यादा इस्तेमाल। दस पंद्रह मिनट बाद
कुर्सी से उतार दिया जाता। एक बार कटाये तो तीन-साढ़े महीने की छुट्टी। दिलजले कहते
- कंजूस है।
बाल कटाते हुए गुदगुदी बहुत होती थी। नाई से डांट बहुत खानी पड़ती - ठीक से बैठो।
जब उस्तरे से ख़त बनाता तो बड़ा डर लगता। नौसिखिये नाई से पाला पड़ा तो समझिये कई दिनों
तक कार्टून माफ़िक दिखना और खाल का भी कई जगह से कट-पिट जाना।
फिर क्रू-कट का ज़माना आया। आगे का हिस्से में बड़े बाल और पीछे छोटे-छोटे।
सत्तर के दशक में नाईयों को बड़ा नुकसान रहा। बड़े-बड़े बाल का फैशन जो था। नाई के
पास पांच-छह महीने पीछे एक बार जाना होता।
नाई की मुस्कुराहट देख गुस्सा आता है। इसीलिए जवानी के दिनों की एक अदद तस्वीर
जेब में हमेशा रहती है - देख कितने घने बाल हैं? और बता कान दिखते हैं
कहीं?
और हां। चलते चलते शेव के बारे में भी बताता चलूं। जाने फिर कभी मौका मिले न मिले।
नाई के इसरार के बावजूद शेव हम घर पर ही करते हैं। एक बार बाज़ार से कराई थी। १९७०
के आस-पास की बात है। दिल्ली के प्लाज़ा में 'ब्लो हॉट, ब्लो कोल्ड' लगी थी। सोचा, सेक्सी अंग्रेज़ी फ़िल्म देखने जा रहा हूं। वहां एक से बढ़ कर एक होंगी। झाड़ की तरह
उगी दाढ़ी तो साफ़ कर लूं। रास्ते में सैलून दिखा। बैठ गए। चेहरा इतना काट-पीट दिया कि
क्या बताऊं। और ऊपर से इंफेक्शन। कई हफ़्ते लगे थे ठीक होने में। वो दिन है और का दिन, हमने चेहरे पर नाई
का उस्तरा नहीं चलने दिया।
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