-वीर विनोद छाबड़ा
बहुत समय पहले की बात है। चौराहे पर खड़ा एक भिखारी भीख मांग रहा था। सुबह सुबह
वो आया था वहां। और अब शाम हो चली थी। मगर झोला लगभग खाली था। बस मुठ्ठी भर अन्न का
ही जमा हो पाया था। भिखारी बड़बड़ाया - बहुत बड़ा मनहूस दिन है आज। अब और देर तक रुकने
का कोई लाभ नहीं है। शाम गहरी हो रही है। घर चलना चाहिए। पहुंचते पहुंचते अंधेरा हो
जाएगा।
यह सोच कर वो मुड़ा ही था कि अचानक हलचल हुई। पता चला राजा की सवारी गुज़रने वाली
है। भिखारी रुक गया। उसने कभी राजा को नहीं देखा था। आज दर्शन हो जाएंगे। वो दर्शन
करने वालों की पंक्ति में खड़ा हो गया।
लेकिन भिखारी को बड़ी हैरानी हुई,
जब राजा का रथ ठीक उसके सामने आ कर रुक गया।
राजा रथ से उतरा और उसने उस भिखारी समक्ष झोली फैला दी - पंडितों ने हमें बताया
है कि राज्य पर कोई बड़ी विपत्ति आने को है। उन्होंने उपाय में बताया है कि सूर्यास्त
होने के बाद जो पहला भिखारी मिले, उससे भीख मांगो। इससे विपत्ति टल जायेगी। महाराज मुझे आप पहले भिखारी मिलें हैं।
मुझे भिक्षा दें। न मत करना।
भिखारी असमंजस्य में पड़ गया। एक तो वो
इस कारण हतप्रद था कि राजा उससे भीख रहा था। और दूसरा यह कि उसके झोले में बामुश्किल
एक मुट्ठी अनाज था। उसने सोचा अगर सारा अनाज राजा को दे देगा तो खुद क्या खायेगा। लेकिन
देना भी तो ज़रूरी था। एक तो राज्य को विपत्ति से बचाना था और दूजा राजा का हुक्म था।
अचानक उसे एक उपाय सूझा। उसने जान-बुझ मुठ्ठी में कम अनाज भरा और राजा की झोली में
डाल दिया।
इसके बाद वो जल्दी से घर पहुंचा। सारी कहानी पत्नी को बताई।
पत्नी को भी हैरानी हुई। बोली- अब जो दो दाने तुम्हारी झोले में बचे हैं उन्हीं
से गुज़र किया जाए। भाग्य में यही लिखा तो कोई क्या करे।
भिखारी ने झोला पलटा। छन्न से एक सिक्का ज़मीन पर गिरा। भिखारी और उसकी पत्नी की
आंखें हैरानी से फटी की फटी रह गयीं। देखा वो सोने का सिक्का था।
भिखारी और उसकी पत्नी ने माथा पीट लिया। भिखारी का तो बुरा हाल था - हाय मैंने
यह क्या किया। काश! सारा अनाज भीख में दिया होता तो मेरा कल्याण हो गया होता। झोला
ढेर सिक्कों से भर गया होता। मैं भूल गया कि दान देने से संपन्नता बढ़ती है।
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04 Dec 2016 mob 7505663626
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