-वीर विनोद छाबड़ा
बड़े हीरो के नाज़-नखरे
वही फ़िल्मकार सह सकता है जिसका दिल-गुर्दा भी बड़ा हो। ऐसे ही एक हीरो थे जो ज़मीन पर
पैर तभी रखते थे जब ढाके का मखमली कालीन बिछा हो। इस हीरो का नाम था राजकुमार। आमतौर
पर उनके साथ एक बार काम कर चुका निर्माता दोबारा काम नहीं करता था। लेकिन एक निर्माता
उनके इतने ज़बरदस्त मुरीद थे कि एक नहीं दो बार उन्हें हीरो लिया। और दोनों ही बार बॉक्स
ऑफिस पर बड़ी कामयाबी मिली। लिहाज़ा उनका हौंसला बहुत बढ़ गया। तीसरी बार उनका किवाड़ खटखटाया।
निर्माता ने उन्हें
अगली फ़िल्म का प्रस्ताव दिया। उन्हें मुख़्तसर में स्क्रिप्ट सुनाई।
राजकुमार बोले - स्क्रिप्ट
से बात समझ में नहीं आ रही है। ऐसा करो स्टोरी सेशन फिक्स कर लो। वहीं सुनेंगे कहानी
और डिटेल में अपना किरदार भी। और फ़िल्म में अपनी अहमियत भी देखेंगे। उसके बाद ही हम
तय करेंगे कि आप और आपकी फिल्म हमारे काबिल है या नहीं। समझे, जानी!
निर्माता ने हीरो से
डेट ली। एक नामी फाइव स्टार होटल में सुईट बुक किया गया। स्टोरी डिपार्टमेंट की पूरी
टीम जुटी। एक्शन के साथ तजुर्बेकार स्टोरी सुनाने वाला यानी किस्सागो बुलाया गया। राजकुमार
साहब का लाल क़ालीन बिछा कर स्वागत हुआ।
कहानी सुनाते हुए किस्सागो
काफी दूर निकल गया। वो बता रहा था…और उस ग़लतफ़हमी की वज़ह
से हीरोइन ने हीरो को बेवफ़ा करार दे दिया…शादी से इंकार करते
हुए हीरोईन ने हीरो को बेहद बेइज़्ज़त किया…इतना ज्यादा कि हीरो
गुस्से से लाल-पीला हो गया.…उसके मुंह से झाग निकलने लगी.…उसने कमरे में रखी
तमाम बेशक़ीमती क्रॉकरी फर्श पर पटक दी... खिड़की के शीशे तोड़ डाले और खिड़की के रास्ते
टेलीफोन का सेट बाहर फ़ेंक दिया…यह सेट इम्पोर्टेड
था जो उसके अंकल ने लंदन से भेजा था.… सोफासेट पलट डाला…
डाइनिंग टेबल भी तहस-नहस कर दी.…कुर्सियों की बड़ी बेदर्दी
से टांगें तोड़ डालीं… कुल मिला कर उसने कुछ
नहीं छोड़ा...तमाम बेशक़ीमती आइटम सत्यानाश कर दिए.…हीरोइन के बाप का घर
पूरी तरह से नष्ट कर दिया…इस दौरान हीरोइन ने
उसे रोकने के बेइंतहा कोशिश की.…लेकिन उसने हीरोइन को धक्का दे दिया…हीरोइन एक कोने में
जा गिरी…उसके सर से खून बहने
लगा.…वो बेहोश हो गई.…लेकिन हीरो की नज़र
इस पर नहीं पड़ी.…अब उसके पास तोड़ने को कुछ बचा ही नहीं…
हीरो ने दरवाजा खोला और बाहर निकल गया.…
ये कहते हुए किस्सागो
कुछ ज्यादा ही जोश में आ गया। किस्से में जान डालने के चक्कर में खुद को हीरो समझते
हुए वो बाकायदा दरवाज़ा खोल कर बाहर हो गया।
निर्माता ने हैरान
परेशान हो कर पूछा - जनाब, ये दरवाज़ा क्यों बंद कर दिया आपने?
राजकुमार बोले - जिस
सीन में हीरो यानी हमें ही कमरे से बाहर कर दिया जाये, हम उस फ़िल्म में काम
नहीं करते। समझे, जानी।
निर्माता ने एक हारे
हुए कप्तान की तरह सर झुकाया। चुपचाप कागज़ात बटोरे और निराश होकर अपनी टीम के साथ कमरे
से बाहर हो गए।
बताया जाता है यह निर्माता
राम माहेश्वरी थे जिन्होंने राजकुमार को लेकर 'काजल' और फिर 'नीलकमल' बनायी थी और उनके बहुत
करीबी थे। इस घटना से उन्हें बहुत सदमा लगा। लेकिन वो हिम्मत नहीं हारे। कुछ साल बाद
पिछला सब भूल कर राम माहेश्वरी ने 'चंबल की क़सम' बनाई। खूब चली थी फिल्म।
जानी राजकुमार इसमें हीरो थे और सामने शत्रुघ्न सिन्हा उर्फ़ शॉटगन। ज़ाहिर है जानी और
शॉटगन के दरम्यान ज़ोरदार मुक़ाबला हुआ। शॉटगन अपने शॉट खेलते रहे और और जानी का अपना
जलवा बिखेरते रहे ।
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Published in Navodaya Times dated 21 Dec 2016
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