Saturday, December 3, 2016

मथुरा वाली मिठाई!

-वीर विनोद छाबड़ा
सालों पहले की बात है। हमारे एक अधिकारी होते थे। उन्हें सिंह साहब कहा जाता था। बेहद ईमानदार। उनका धर्म था - बिना धर्म, जाति और वर्ग में भेद किये हर किसी की मदद करना। न कोई छोटा और न कोई बड़ा। सबसे दोस्ती।
कई लोगों ने उन्हें उपकृत करने की कोशिश की। लेकिन उन्होंने बड़ी विनम्रता से मना कर दिया। हमारा इस पर विश्वास नहीं है। हमारा सिद्धांत है - नेकी कर और दरिया में दाल। कभी कभी ऐसा भी हुआ कि कोई अड़ियल पीछे ही पड़ गया। वो प्यार से भी न माना तो उन्होंने उसे बुरी तरह लथाड़ दिया।  
हां, कोई मिठाई वगैरह ले कर आया तो मना नहीं किया। अब ले ही आया है इतने प्यार से तो रख ही लें। लेकिन ताकीद कर देते कि आयंदा से मत लाना। इस मिठाई को वो घर नहीं ले गए। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों में बांट दी। कभी कभी अपने ड्राइवर या सिक्योरिटी गॉर्ड को उपकृत कर दिया। होली-दिवाली पर तो तरह-तरह की मिठाई के डिब्बों का ढेर लग जाता था। उनके अधीनस्थों और कई मित्रों को बाज़ार से मिठाई खरीदने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
एक बार दीवाली के मौके पर सिंह साहब को एक भक्त ने मिठाई का डिब्बा दिया, चमकीली पन्नी में लिपटा हुआ। एक प्लास्टिक का फूल और हरा रिब्बन भी बंधा हुआ था। बड़ी अनुनय की उसने - सर, खासतौर से मथुरा से लाया हूं। वहां के पानी और मट्टी की खुशबू मिलेगी इसमें। भाभी जी और बच्चों को बहुत पसंद आएगी।
सिंह साहब ने सर हिला दिया। उस दिन मिठाई के कई डिब्बे जमा हो गए थे। सिंह साहब ने सब बांट दिए। बस वही एक मथुरा वाला एक बचा था।
सिंह साहब देर शाम थके-हारे घर पहुंचे। ड्राइवर ने बाअदब दरवाज़ा खोला। सिंह साहब कार से उतरे। ड्राइवर ने सल्यूट मारा और जाने की इजाज़त चाही।
सिंह साहब को ख्याल आया कि कल दीवाली है और ड्राइवर को कुछ नहीं दिया। उन्होंने उसे वही मथुरा वाली मिठाई का डिब्बा पकड़ा दिया।
देर रात सिंह साहब की कोठी पर वो ड्राइवर हांफता-कांपता पहुंचा। उसके हाथ में वही मथुरा वाली मिठाई का डिब्बा था।
सिंह साहब पेश्तर इसके कि कुछ पूछते ड्राइवर ने मिठाई का डिब्बा खोल दिया।

देखा पांच सौ के नोटों की कई गड्डियां थीं उसमें। सिंह साहब के पांव तले से ज़मीन खिसक गयी। उनके हाथ-पैर कांपने लगे। बहुत मुश्किल से उन्होंने खुद पर काबू पाया।
ज़ाहिर है सिंह साहब ने यह 'मिठाई' को अपने पास नहीं रखी। लेकिन हमें ठीक-ठीक याद भी नहीं है कि इस मिठाई को ऑफिस के फंड में जमा कराया गया या गरीबों-अनाथों में बांट दिया गया या उसी ड्राइवर को दे दिया गया कि जा तेरी किस्मत तुझे मुबारक़।
लेकिन हमें उस दिन पहली बार पता चला कि मिठाई के डिब्बे में भी नक़द घूस दी जाती है और ली भी जाती है।

उस दिन के बाद से हमने अपने सेवाकाल में जब किसी के हाथ में मिठाई का डिब्बा देखा तो डर गए। कहीं यह मथुरा वाली मिठाई तो नहीं! और कहीं यह हमारी तरफ तो नहीं आ रहा है! और तो और मिठाई वाले से भी जब कभी मिठाई खरीदी तो बड़े ध्यान से देखा कि वो डिब्बे में मिठाई ही पैक कर रहा है। 
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